कर्ण विकार (कानों के रोग)
अनार के ताजे पत्तों का रस 100 मिलीलीटर, गौमूत्र (गाय का पेशाब) 400 मिलीलीटर और तिल का तेल 100 मिलीलीटर, तीनों को धीमी आंच पर उबालते हैं जब केवल तेल शेष ही रह जाए तो इसे छानकर रख लें। इसकी कुछ बूंदें थोड़ा गर्म कर सुबह-शाम कान में डालने से कान की पीड़ा, कर्णनाद और बहरेपन में लाभ होता है।
अनार के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में बेल के पत्तों का रस और गाय का घी मिलाकर गर्म कर लेते हैं। इसे लगभग 20 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर उसमें 250 मिलीलीटर मिश्री मिले दूध के साथ सुबह-शाम लेने से बहरापन में लाभ होता है।
खट्टे अनार के रस में शहद मिलाकर कान में डालने से कान का पैत्तिक दर्द दूर हो जाता है।
थोड़े से अनार के छिलके और 2 लौंग को लेकर सरसों के तेल में डालकर अच्छी तरह से पका लें। पकने के बाद इस तेल को छानकर एक शीशी में भर लें। इस तेल को कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
