ऐ मसीह तुमसे
ऐ मसीह तुमसे अरमान करूँ
अपने जिस्म को कुरबान करूँ
मेरा चलना, बोलना और
हर ख्याल तुमको भाए
मेरी सूरत, ऐ मसीहा
तुमसी ही होती जाए
ऐसी ज़िन्दगी, आरमान करूँ
अपने जिस्म को, कुरबान करूँ
ना बनू में जमाने सा,
पर मन बदलता जाए
मसीह हर दिन जिये मुझमें
मेरा में मरता जाए
इच्छा जो हो तुम्हारी,
उसको सुबहो-शाम करूँ
अपने जिस्म को क्रबान करूँ
